एक सौतेला पिता और एक किशोर संगरोध वर्जित में लिप्त होकर अपनी यौन इच्छाओं की खोज करते हैं। वह उसे अपने धड़कते हुए सदस्य से चिढ़ाता है, जिसे वह उत्सुकता से अपने मुँह में लेती है। उनकी भावुक मुठभेड़ एक संतोषजनक रिहाई में समाप्त होती है, यह साबित करती है कि अलगाव में भी, इच्छा की कोई सीमा नहीं है।